एक रंडुए की मौत
एक रंडुए की मौत
😛 एक रंडुए की मौत 😛 🤪 हास्य व्यंग्य 🤪 ✍️ श्री हरि 🗓️ 22.11.2025 हमारे नगर में कल एक ऐसा ऐतिहासिक प्रसंग घटा कि नगर निगम में छुट्टी घोषित हो जाए तो भी कम पड़े— एक रंडुआ मर गया। अब रंडुए की मौत कोई सामान्य घटना नहीं थी; वह तो मोहल्ले के टिकटॉक-स्तर के सेलिब्रिटी, चाय की दुकान का स्थायी स्तंभ, और हर गली की चुगलखोरी का मुख्य स्रोत था। उसका मर जाना, मोहल्ले के लिए ठीक वैसा ही था जैसे संसद में शांति— असंभव सी घटना! लेकिन घटना होते ही हमारे मोहल्ले के स्वयंभू राजनैतिक विश्लेषक पप्पू खानदानी ने बयान जारी कर दिया— “भाइयो-बहनो, ये मौत मोदीजी की खतरनाक साज़िश है! मोदी उस रंडुए का ब्याह नहीं करवा पाया, इसलिए उसको मरवा दिया। दरअसल, मोदी सभी रंडुओं को समाप्त करना चाहता है… क्योंकि रंडुए हमारे वोटर्स हैं!” पूरा मोहल्ला इस अद्भुत निष्कर्ष से स्तब्ध। पड़ोस की बुआ—जो हर खबर में नमक-मिर्च छिड़क कर परोसने की विशेषज्ञ हैं— ने आँखें फाड़ते हुए कहा, “अरे भाया, रंडुआ तो कल रात दारू पीकर नाली में गिर गया था। उसके मरने की वजह सिर फूटना है— इसमें मोदी कहां से आ गए?” यह सुनते ही गिरगिटिया (जो खुद को ‘स्थानीय रावण’ मानता है) चटाक से बोला— “अरे देखो! दारू किस सरकार में पी थी? मोदी सरकार में!! बस, कनेक्शन यहीं है!” और फिर उसने अपनी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की PhD खोलकर लॉजिकल थ्योरी सुना दी— “मोदी ने सड़क बनवाई → सड़क पर दुकान खुली → दुकान से दारू मिली → दारू पीकर रंडुआ फिसला → रंडुआ मर गया → तो इसके लिए मोदी जिम्मेदार है कि नहीं? लॉजिक तो एकदम टॉप क्लास!” इस पर पप्पू खानदानी का चाकर, हमेशा झुककर चलने वाले पिंटू चाचा, तुरंत बोले— “लेकिन मरने से पहले रंडुआ चिल्ला रहा था— ‘मेरे रंडुआ रहने में भी मोदी का हाथ है!’” छमिया भाभी ने कमर पर हाथ रखकर पूछा— “वो कैसे रे?” पिंटू चाचा ने गर्दन फुलाकर समझाया— “सीधी सी बात है भाभी, मंहगाई इतनी बढ़ गई कि शादी करना असंभव सा हो गया। और बेरोज़गारी की तो पूछो मत! बेचारा बेरोज़गार था— कौन लड़की उससे शादी करती? इसलिए वो रंडुआ रहा… और इसका सीधा मतलब— मोदी की गलती!” छमिया भाभी हँसी दबाते हुए बोलीं— “तो इसीलिए तेरा पप्पू खानदानी भी रंडुआ रह गया?” पूरे मोहल्ले में ठहाका। पिंटू चाचा का चेहरा ऐसे लटका जैसे सरकारी दफ्तर में पंखा। वह चुपचाप बिना ‘नमस्ते’ बोले पतली गली से भाग निकला। तभी छगन भइया बोले— “लेकिन रंडुआ तो घर में तानाशाही से तंग आकर घर छोड़ गया था!” गिरगिटिया तुरंत उछल पड़ा— “ये भी मोदी की गलती है! घर-घर में टकराव इसलिए हो रहे हैं क्योंकि टीवी पर राष्ट्रवाद ज्यादा दिख रहा है। और राष्ट्रवाद किसका? मोदी का!! बस, मामला फिर फिक्स!” अब तो मोहल्ले को पूरा यकीन हो गया— कि रंडुए की मौत का वास्तविक मास्टरमाइंड घटना-स्थल से हज़ारों किलोमीटर दूर बैठा है। मोदी जी शायद कहीं विदेशी मेहमानों से हाथ मिला रहे होंगे, लेकिन गिरगिटिया घोषणापत्र पढ़ रहा था— “अगर कल मेरी बिल्ली भी बीमार हो गई तो जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की होगी। क्योंकि बिल्ली भी इसी देश में रहती है!” तुरंत तालियाँ। कुछ ने जयकारा भी लगा दिया— “रंडुओं को न्याय दो!” रंडुआ मरकर भी मोहल्ले की TRP बढ़ा गया। अब वह हँसा या रोया— यह इतिहास नहीं बताएगा। लेकिन व्यंग्य का निष्कर्ष एक-दम धुलकर सामने आ गया— “किसी को कुछ भी हो जाए… बस दोष मोदी को दो, तर्क बाद में गढ़ लो!” 😄 व्यंग्य समाप्त, मोहल्ला चालू। 😛
