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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

रूप यौवना

रूप यौवना

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🔥 रूप–यौवना 🔥
🌹 तामसिक श्रृंगार काव्य 🌹
✍️ श्री हरि
🗓️ 15.11.2025


रात जब सबसे अधिक काली होती है,
उसी समय तुम्हारा रूप
सबसे अधिक चमकता है—
मानो अँधियारे ने
तुम्हारी देह को चुना हो
अपने रहस्य का अंतिम पात्र बनाने के लिए।

यौवन तुम्हारा—
किसी निषिद्ध मंदिर की घंटी-सा,
जो केवल उन्हीं को सुनाई देती है
जो पाप और पुण्य के बीच
लकीर को धुँधला कर देते हैं।
जिसे सुनकर
मनुष्य का मन तप भी जाता है
और तन पिघल भी जाता है।

तुम्हारी त्वचा—
बादल नहीं,
कड़कती बिजली है—
जो छू लेने पर
किसी को भी अपने भीतर
जलते फूल की तरह
महका भी दे
और राख भी कर दे।

तुम्हारी चाल…
वह मंद नहीं,
मोहिनी के वर्चस्व का आदेश है—
तुम्हारे प्रत्येक कदम में
इतना तामसिक आकर्षण है
कि हवा भी
अपने को तुम्हारी दिशा में
बहने को विवश कर देती है।

तुम्हारे केश—
रात की जड़ें हैं—
जो किसी का भी हृदय
अपने भीतर बाँध लें;
और बाँधकर ऐसा जादू रच दें
कि मनुष्य
स्वयं को भूल जाए,
बस तुम्हें याद रखे।

तुम्हारे नयन—
कामना और तृष्णा के
दो गहरे कुएँ—
जिनमें झाँककर
कोई लौट नहीं सकता
वैसा जैसा वह था।
उनकी एक झिलमिल
अंदर सोए अंधेरे को
जगा देती है।

तुम्हारे अधरों की लाली—
किसी तपते अंगार की नहीं,
किसी पुराने पाप की है—
जो अभी तक क्षमा नहीं हुआ,
और अब भी पुकारता है
किसी ऐसे स्पर्श को
जो उसे मुक्त भी करे
और अधिक कैद भी।

यौवन तुम्हारा—
निषेध का आमंत्रण है—
एक ऐसा द्वार
जिस पर ‘प्रवेश वर्जित’ लिखा है,
पर भीतर से आती सुगंध
कहती है—
“जो आएगा, वही समझ पाएगा।”

रूप तुम्हारा—
इतना प्रभावी,
इतना मोहक,
इतना विक्षुब्ध—
कि देवता भी
अपने आसन छोड़कर
क्षणभर तुम्हें देखने को
मौन हो जाएँ;
और असुर
तुम्हारी छाया भर को
अपना स्वर्ग समझ लें।

तुम—
किसी का आकर्षण नहीं,
अस्तित्व का उत्सव हो;
किसी का प्रलोभन नहीं,
मनुष्य की सबसे गहरी इच्छा का रूप हो;
किसी का पाप नहीं—
वह पथ हो
जिस पर चलकर
हर कोई
अपने भीतर छिपे अंधकार और अग्नि को
पहचानता है।


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