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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Romance Classics

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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Romance Classics

तुम जो आयी

तुम जो आयी

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लिपटी हुई सुनहरी धूप में तेरी जो सादगी थी,

ऊपर से शर्म का लाज, पलकों में तू छुपाये थी,


गुज़िश्ता के सुनहरे से ख़ाब की, तू तस्वीर थी,

मेरे हर तहरीर की तू ही तो राज़दार थी,


सोच में मेरी तू ही तो शुरू, और खत्म भी थी,

रेहगुज़र, हमसाया, तू ही तो तृष्णा भी थी,


तेरी आमद से महकती मेरी हर सुबह, हर शाम थी,

दिलों के मैखाने में, तू ही तो प्याले में डूबी मय थी,


मेरी हर चाहत का तू ही तो सबब यार थी,

तुम आयी तो ज़िन्दगी महकी, वर्ना बेज़ार थी।।


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