STORYMIRROR

तुम ही तुम

तुम ही तुम

1 min
554


मेरी चाहत उस मुकाम पर है 

ईश के अर्श की चौखट सी पाक

कौन सी कमी ने तुम्हें छला

तुम दामन छुड़ाकर चल दिए


मेरे सपनो का धुआँ 

तुम्हारे वजूद के आसपास ही छंटता है

हसरतों की बाँहें आह्वान देती है

अमराइयोंमें उठती बयार से पूछो


मेरे उर से 

हर सौरभ तेरे नाम की उठती है

सुबह की पहली रश्मियाँ सूँघना

मेरी साँसों को छूकर चलती है 

एक नग्मा दोहराते 


ढूँढ लेना उस नग्में में मुझे 

बिलकुल तुम्हारे नाम के करीब 

जो एक धून बजती है

रात में गगन को तकते चूमना 


तारक मणि मंड़ित चद्दर से 

चुनना एक सितारा चाँद का पड़ोसी 

शुक्र सा झिलमिलाता 

मेरे माहताब की छवि ना दिखे तो कहना


मेरे तन के घट से ढ़लती हर शै में 

अपने निशान पाओगे

संगिनी हूँ, महज़ कण सी नहीं 

अधरों से उठती रागिनी सुनना 

हर दास्ताँ में तुम ही तुम बसते हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance