तुम ही हो सर्वस्व मेरा
तुम ही हो सर्वस्व मेरा
तुम हो सवेरा मेरा
तुम ही सुनहरी धूप.
घास की नोक पे
झिलमिलाता मोती,
खिलते फूलों की सुगंध,
फेफड़ों में भर रही
बसंत की ताजगी
ये सब तुम ही तो हो।
तुम हो धरती का घूमना
अपनी धुरी पे,
हर दिन, हर पल।
चिड़ियों का मधुर कलरव
भौरों का गुंजन,
प्रकृति की निस्तब्ध सुंदरता
ये सब तुम ही तो हो।
तुम हो नशीली रातें मेरी,
तुम ही चंदा की चंचल किरणें.
शिशु की निश्छल
खिलखिलाती हंसी,
मंदिर में बजती घंटियों का संगीत,
मेरे अंतर्मन में गूंजती शहनाई
तुम ही हो मेरा सब कुछ,
मेरा सर्वस्व।
पूर्णता पाता है मेरा
अस्तित्व तुमसे मिलकर ही,
तुममें समा कर ही।

