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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

तुम बदल जाओगे जरुर,

तुम बदल जाओगे जरुर,

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हां कुछ देर तन्हा ही सही,

चेतना तो है जिंदा लाश सही।

इधर उधर देखने वाला अक्सर चोर होता,

अभी वक्त है सभल जाओ नश्वर घोर होता।

उसे मालूम है या तुम्हें कि हम क्या हैं,

कभी नहीं तो आज झांको हम क्या हैं।

इतना भी कातिल नहीं हूं हया ए शर्म का,

कि लोग हमें काफिर समझ लें कर्म का।

हमने कागज के टुकड़ो पर लिखना छोड़ दिया है,

जब से कागज की वैलू को हमने समझ लिया है।

आपको अब कहां समय कि आप हमारा खत पढ़ें,

इसलिये इस डिजिटल मंच को ई कागज समझ लिया है।

आप तक पहुंच भी रहे हैं अपने टूटे फूटे अल्फाज,

यही आपकी जागरुकता के लिये है हमारी आवाज़।

तश्दीक ए गम लिखता अपने, जमाने के,

और लोग व्यंग समझ लेते हैं फसाने के।

वक्त ही कुछ ऐसा है,

रुख बदले न बदले, 

तुम बदल जाओगे जरुर,

मौसम ए इख्त़यार ही खुछ ऐसा है।



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