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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

तुच्छ

तुच्छ

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वह कोई नायाब हीरा नही गली मोह्हले का तुच्छ सा पत्थर भर 

पर जोर ज़बरदस्ती चिल्ला चिल्ला कर अपनी बात मनवाने तुली रही


आशियाना जल रहा था मजलूमों का हुकूमत तमाशा देख रही 

मौत लगा रही थी जिंदगी को गले सियासत मौत का उत्सव मना रही 


कितने तुर्रमखां बली चढ़ गए किसने रखा हिसाब यहाँ 

आती जाती सरकारे अवाम नदारद सा बर्ताव करती रही


नाव में कराकर छेद आपको बचाने का दम भरती रहती

नाविक की जेबे गर्म कराकर गुणगान का आदेश जारी करती रही


पैर पसारे वैश्विक विवशता 'नालन्दा' देह का अधिकार हारती रही

तुच्छ काँटों को जिंदगी की सहर पलको से निकालती रही।


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