टूटे रिश्ते का दंश
टूटे रिश्ते का दंश
अब रिश्ते के गणित में भूली अंतर्मन की सिसकियाँ,
मन का ये करुण क्रन्दन,रोई रोई सी है मेरी अँखियाँ !
कोई तो अपनापन दिखाए, प्यार से सबको समझाए,
रात के गहन सन्नाटे को चिरने लगी हैँ अब सरगोशियाँ !
टूटे रिश्ते का दंश बनकर, दिल पर ढाए जो एक कहर,
यादों के समंदर में आँसू बनकर रह गई बस हिचकियाँ !
प्रेम का पथिक थक चला लेकर अपना क्लान्त शरीर,
रिश्ते बने अजनबी, कैसी स्वार्थी मन की विसँगतियाँ !