टूटा खंडहर.......!!
टूटा खंडहर.......!!
लम्बे अरसे बाद
फिर गुज़री वो राहें
ख़ामोशी का मंज़र..
वो टूटा खंडहर...
बिखरे यादो के साये.......
धीरे से बढ़े कदम
हौले से बुदबुदाये ..
शोर करती गलियां..
आँखों में छुपे वो साये.....
घड़ी की टिकटिक
वक़्त का ख़ंज़र..
बदले थे वो सारे मंज़र..
काले घने अँधेरे में
बुझे थे चिरागो के साये...
रात का तन्हा चाँद
बादलो में छुपा जाये..
तारे बिन कहे मुस्कुराये..
चीख गूंजती दर्द के साये...
ढहा था अपनों का जहाँ
चूर के बिखरे हौसले
आहों से भरा खंज़र
दिल को चीरा था अंदर
निढाल गिरे अस्को के साये..
शब्दों को उकेरने में
बोझिल नसीब के साये
टूटा खंडहर वो मंज़र..
नंदिता ढूंढे वही खंज़र..
जहाँ मिले थे दर्द बिछड़े खुद के साये......!