ट्रिन ट्रिन
ट्रिन ट्रिन
मुझे याद है वो दिन आज भी,
ट्रिन ट्रिन की घण्टी बजी थी जिस दिन।
कौतूहल से भागते सब उठाने रिसीवर,
रेस होती थी दौड़ते थे सब मिलकर।
चुपके चुपके यूँ ही नम्बर घुमाते थे,
एकांत मिलते ही टेलीफोन तक जाते थे।
युवावस्था गुज़री ब्लैंक कॉल के फेर में,
जब उसकी मधुर हैलो गूंजती थी कानों में।
नम्बर घुमाते घुमाते डायरेक्ट्री रट जाती थी,
सिक्का डालने पर याददाश्त काम आती थी।
नई पीढ़ी आयी जब से आतंक खूब मचाती है,
बिन डेटा ये अड़ जाए ज़िद बहुत चलाती है।
घड़ी को इसने साथ में रखा टॉर्च संगी साथी है,
अलार्म और टाइमर के साथ एफ एम भी बजाती है।
डायरेक्ट्री इसके हृदय में ये बर्थडे याद कराती है,
फोटो खींच संजोये अपनों को पास लाती है।
मुट्ठी में खबरें दुनिया की वीडियो चैट का बना दस्तूर,
ये मोबाइल है भैया, भला इसमें इसका क्या कसूर।
