टीचर
टीचर
गुरु मानव पर देव सम, गुरु ग्रंथों का सार
अवगुण उर का मेटकर, करता भव से पार ।।
लभे जिसे गुरु की कृपा, वो नर बहुत महान।
गुरु अवगुण को मेटकर, सतत बढ़ावे शान।।
काटे कलिमल हृदय की, मन में भरे प्रकाश।
गुरु प्रकाशमय पुंज है, सबका करे विकास।।
दिशा मिले गुरु बिन कहाँ? गुरु बिन होत न ज्ञान।
बिन गुरु इंद्रिय कब सधे, गुरु बिन सब अज्ञान।।
गुरु समर्थ है ज्ञान में, ऊँच नीच समझाय।
ज्यों पारस के छाप से, लौह स्वर्ण बन जाय।।
अंधकार में गुरु सतत, पथ के बने प्रदीप ।
गुरुवर के आशीष बिन, मोती पले न सीप ।।
गुरु ही चारों वेद हैं, गुरु ही चारों धाम।
गुरु ही ज्ञान प्रकाश हैं,गुरु होते निष्काम।।
प्रभु ने गुरु के वेश में, लिया भूमि अवतार।
आलोकित सब जन बने, हो सबका उद्धार।।
गुरु की कृपा अपार है, गुरु त्याग पर्याय।
कर्म मात्र ही ध्येय है, यही प्रथम अध्याय।।
गुरु ही ज्ञाता-ज्ञेय है, गुरु विद्या की खान।
मात पिता समकक्ष वे, करो यथोचित मान।।
गुरु की गुरुता मोहिनी, भरे शिष्य मे तेज ।
क्षण में कंटक पथ अरी, बने पुष्प की सेज ।।