तरस गयें हम खुद से मिलनें को
तरस गयें हम खुद से मिलनें को
तरस गए हम खुद से मिलने को
बगिया में आशाओं की कली खिलाने को
जब खो गए इस भीड़-भाड़ मे अकेले ही
साथ मिला नहीं बिछड नेके लिए ही सही
तन्हां सफर रास्तों का मंजिलों की खोज में
गुम है हम आज भी नहीं मिले इक रोज़ में
किसी से दिल का दर्द बयाँ करना आसाँन नहीं
खिलखिला के हसते है लोग हाल बयाँ होते ही
जिम्मेदारियों ने ऐसे मसरूफ रखा है
झुक भी न सकते काँटा पाव में चुभा है
सवालों की कशिश में उलझे है दर्द के साए
इसी कश्मकश में खुद से मिलने को तरस गए।
