तरंग से जागो
तरंग से जागो
उठो उठो और निंद्राप्रेमी
सुखद नींद से अब तुम जागो
नये नये 'विचारोत्सर्ग करो तुम
नई उमंग - तरंग से जागो तुम
बीती रात कमलदल फूलै
आभाषित हो रहे हैं देखो
खुशियों के ये प्यारे 'छौने'
महकावे अब ये दिवस तुम्हारे
" लक्ष्य" खोजने मंजिलें पुकारे
"ब्रह्ममूर्हुत" बडा़। है। प्यारा
जुड़ जाती है सबकी तब
" परमात्मा " से आत्मा हमारी
खिल जाते तब कमल कमलिनी
प्रात जीवन खिला खिला सा
रात कालिमा नष्ट हुई तब
" उद्भाषित " आंखों के सपने
करलो तुम परिवर्तित जीवन
पंछी चहके उठे यूं नभ में
चहल पहल छाई अब जग में
मंदिरों में मंत्रौच्चारण गूंजे
गूंजे शंखनाद, घंटाधवन्नि
"भ्रमर" गूंज से खिला "कमलदल"
पनघट पर नुपूर की रूनझुन
नीर भरी गगरी तब छलके
देख चंद्रमा की जल क्रीडा़एं
"बुद्धि" को बना लो 'दीपक '
करो ह्रदय मस्तिष्क में प्रज्वलित
क्रोध ईर्षा का कर परित्याग
सृजनशील जीवन तुम करदो
चाहे आवे हवा का झोंका
झंझावात,बढ़वानल, दावानल
लो समेट सब को बाहों में
समय गति करलो तुम वंश में
पहचानो जीवन-मूल्यों को
खुद को जानों दृढ़ संकल्प करो
तूफानों से होना ना विचलित
"अडिग कदम"कर तूफानों से टकरा
सौ वज्र गिरे ,सुलगे धरा
चूर चूर कर दो पाषाणों को
"खुद" ही बन पाषाण समान
शूलों के घेरों को करो छिंन्न छिन्न
'सात्विकता' से ओत प्रोत हो
जीतो 'जग' को तो ना खुश होना
'हारो' जग को तो ना पछताना
' मृगछौना' बन ना भरो 'कुलाचें'
जीवन को "त्यौंहार" बना तुम
दुनियां को संवार बड़े आगे जाओ
करो 'शखंनाद' अब प्रगति का तुम
लो समेट बाहों में जिदंगी
बन जाओ "आधार शिला" सबकी
बीती रात कमल दल फूले।