तन्हाई
तन्हाई
मैं किससे बात करूं
किसको किसको याद करूं
जब बिखर गया हो सब कुछ
तब कैसी मुराद करूं
तन्हाई देती दर्द
सुना करता था तरानों में
ये दर्द मुझे होगा
नहीं सोचा था जमानों में
करके जिकर सबसे
नाहक वक्त बर्बाद करूं?
मैं किससे बात करूं?
उमर पड़ाव लिए है वो,
सब कहते ये सब जायज है
पूछते मेरा तन्हा होना
कैसे नाजायज है
जब अवसाद सहज इतना
क्यूं व्यर्थ फसाद करूं
पर मैं किससे बात करूं?
घड़ी दो घड़ी का
प्यार ही काफी था
कांधे पे सर का,
भार ही काफी था
जब आंसू इतने महंगे
मैं व्यर्थ विलाप करूं
मैं किससे बात करूं?
सबकी अपनी चौकी,
सबकी अपनी मन्नत,
सबकी दुनिया अपनी,
सबकी अपनी जन्नत,
मेरी दुनिया थे सब
तन्हा कैसे आह्लाद करूं
पर मैं किससे बात करूं?
किसको किसको याद करूं?
तन्हा जीना अब सीख रहा
चुप रह कर जीना सीख रहा
नहीं बोलती अब आंखें
मैं आंसू पीना सीख रहा
पर फिर से सब से जुड़ जाने की
जाने क्यों फरियाद करूं
किसको किसको याद करूं
मैं किससे बात करूं?