तमाशा खून का..
तमाशा खून का..
एक रोज़ तमाशा ऐसा भी हो जाएगा
रंग खून का तकसीम करे..इंसान बँट जाएगा
बिकने को नया बाजार भी लग जाएगा
तू हिन्दू मैं मुसलमान..फिर हो जाएगा।
खत्म हो रही है इंसानी नस्लें शहर में
वहेशी भेड़िए बस गए हैं बस ज़हन में
डर से वो सीने में जो धड़क रहा है ..
तू कब सुन पाएगा ?
मरना और मारना जानवर भी करते हैं..
तू इंसान कैसे कहलाएगा !
रंग भर के जहाँ में..खुदा खुद पछताया..
रंगीन ना हो..और पानी रंगहीन बनाया..
क्या पता था..बाज़ी वो फिर हार जाएगा..
पानी भी यहा..
झम झम और गंगाजल हो जाएगा !
एक रोज़ तमाशा ऐसा भी हो जाएगा
रंग खून का तकसीम करे..
इंसान बँट जाएगा।।