तलाश
तलाश


मैं यकीनन तलाशता उस शहर में तुझे,
पर बारिशों ने थे कदमों के निशां मिटा दिये।
जिस गली में तेरा मकां हुआ करता था,
कुदरत ने थे उस के हर एक निशां मिटा दिये।
जिस बगीचे के हर एक फूल में खुशबू थी तेरी,
वो बगीचा भी ढूढ़ने पे ना नज़र आया।
मैं अकेले जो था घबरा गया इस शहर में तेरे,
मुझको तेरा साया जो साथ मेरे ना नज़र आया।
हर दफ़ा जो तुझे देख के जलाता था चिराग,
इस दफ़ा अन्धेरे में ही ये शहर नज़र आया।
जो कोई भी एक बार मिला होगा तुझे,
वो शख्स भी तुझे तलाशता नज़र आया।
जो कश्तियों को डुबाने का हुनर रखता था,
वो दरिया भी तुझे मांगता नज़र आया।