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Shailly Shukla

Drama Inspirational

2.5  

Shailly Shukla

Drama Inspirational

तलाश

तलाश

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चलो आज स्वयं की तलाश करूं....

कुछ आज़मा के देखूं

विस्तार दूँ सीमाओं को !


घुप अंधियारे में किरण की तरह,

जीवन में अपने प्रकाश करूं...

चलो आज स्वयं की तलाश करूं....


आधे अधूरे स्वप्न जो

मन के किसी कोने में

बैठे तो हैं सदा से

पर शायद कभी किसी की नज़र नही पड़ी है...


मैने भी तो हर पल उत्तरदायित्वों के चलते

अनदेखा ही किया है,

सब धूल सी चढ़ी है !


अभिलाषाओं के पन्नों को

ज़रा झाड़ के तो देखूँ,

उस नीरस जीवन का अवकाश करूं...

चलो आज स्वयं की तलाश करूं....


कौन हूँ टटोल कर देखूँ ज़रा

भूमिकाओं के उपनगर में सिमटी रही हूँ मैं सदा !

पुत्री, सखी, पत्नी, माता बनती रही हूँ मैं सदा !


रूप तो अनेक हैं पर हर रूप से भी कुछ परे,

एक पंछी भी तो हूँ, उड़ने को बेताब हूँ,

एक नदिया भी तो हूँ, हर किनारा लाँघती !


कौन हूँ मैं, आज खुद से पूछ लूँ

परिभाषाओं के चंगुल से छूट कर

ढाल लूँ खुद को अपने ही व्यक्तित्व में !


आज तो मैं, मैं बनूं, हर 'काश' को पूरा करूँ !

खेद न रहे कोई, न कभी फिर मैं 'काश !' करूँ...

चलो आज स्वयं की तलाश करूं....


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