STORYMIRROR

रूपेश श्रीवास्ततव काफ़िर

Romance

4.5  

रूपेश श्रीवास्ततव काफ़िर

Romance

तकलीफ़ देती है

तकलीफ़ देती है

1 min
118


अंधेरों में गुजरी हो जो ज़िन्दगी, तकलीफ़ देती है,

आँखों में पड़ जाये जो रोशनी, तकलीफ़ देती है।


न जाने क्यूँ, फेरती हो तुम नज़रें, मेरी नज़रों से,

तेरी नज़रों की ये नाराज़गी, तक़लीफ़ देती है।


बेशक बात न करो मुझसे, ये हक़ है तुम्हें, मगर,

भरी महफिल में तेरी बेरुखी, तकलीफ़ देती है।


सह सकता हूँ मैं, ज़माने के हर तोहमत, मगर,

ऐन मौके पे तेरी खामोशी, तकलीफ़ देती है।


कहने को तो बहुत भीड़ है, इस ज़माने में, लेकिन,

'काफ़िर' के शहर में तेरी कमी, तकलीफ़ देती है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance