तकदीर कैसी
तकदीर कैसी
तकदीर कैसी किसने लिख दी
ऐसी लिख दी, वैसी लिख दी
जब भी सोचा ऐसा क्यूँ लगा
रब ने ज़रूर दिल्लगी कर दी !
मेरे तेरे अपने सारे
देखें कैसे चाँद औ तारे
सच में तो ये सोये सारे
जब उसने बरबादी कर दी !
सबको मालूम नहीं कर्ता
मेहनत से बदला जो दिखता
रंग औ नूर हर पल निखरता
तकदीर भी तूने हद कर दी !
फिर भी सब कुछ है नश्वर
न कुछ भी है अजर अमर
हो सके तो इश्क खत्म कर दो
मन की धड़कन आहूति कर दी !!
