तिश्नगी
तिश्नगी
प्रेम
तिश्नगी है,जो बुझती नहीं कभी
आँखो में अश्कों का समुन्दर है प्रेम!
डूबते ही जाना है
खुद को खोना है हर बार,
और पार उतर जाना है!
"रूह के सागर से छलकी अमृत की बूँद है प्रेम"
प्रेम
तिश्नगी है,जो बुझती नहीं कभी
आँखो में अश्कों का समुन्दर है प्रेम!
डूबते ही जाना है
खुद को खोना है हर बार,
और पार उतर जाना है!
"रूह के सागर से छलकी अमृत की बूँद है प्रेम"