तिलिस्म
तिलिस्म
जिनके होंठों पे सदा ताले हैं
क्या उनकी आंखों में सपने नहीं
हमारे दर्द से जो बेचैन हो उठे
क्या वही गैर हमारे अपने नहीं
गुस्ताख़ दिल क्यों सितम ढाता है
किसी की आरज़ू पर क्यों बर्बाद हुआ
क्यों शोला दिल का ज़िद पर अड़ा है
जलते जलते यहां कौन आबाद हुआ
कैसे दावा करें जिंदगी में दम कितने हैं
जो बीत गई ,दिल में उसका खाका है
जो बची है उसके लिए बदहवासी है
यहां जिसको देखो बन बैठा आका है
तिलिस्म के साए में किसको ढूंढें
हजूम है हर तरफ पर आदमी कहां है
जो तारूफ कराए वफादारों से
इस भीड़ में ऐसा हमनशीं कहां है......
