STORYMIRROR

Swaraangi Sane

Drama

4  

Swaraangi Sane

Drama

तिलिस्म

तिलिस्म

1 min
519

उसके हाथों को

मेहँदी से रँगा जाता रहा

बचपन से हर

तीज-त्योहार पर।

   

उसके समझ आने से

चीज़ें समझ से परे हो जाने तक

यह सिलसिला बना रहा।


बहुत बाद में वह जान पाई

कि यह तो एक साज़िश थी

ताकि वो कभी न अपनी लक़ीरें देखे

न उन्हें सच में बदलने की जुगत कर पाए।


अब वह भी बन चुकी है

इसी साजिश का हिस्सा

उसकी बेटी और बेटी की भी बेटी को

सुँघा चुकी है मेहँदी की खुशबू।


उसी ने बना दिया है

उन्हें भी अचेत

पर देर नहीं हुई कि कुछ न हो सके

उसे किसी तरह चुरा लेनी है,


मेहँदी की गंध और उसका रंग भी

तो बेटियाँ निकल सकती हैं

इस तिलिस्म से बाहर

सच अभी इतनी भी देर नहीं हुई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama