थोड़ी बाहें खोलो तुम भी
थोड़ी बाहें खोलो तुम भी
जब कभी वह नदी की तरह मुझ में आकर मिली
मैंने किसी व्याकुल समंदर सा खुद की सीमाएं खोली
देखो ना मुझ में समाहित होकर वह कैसे इतरा रही हैं
मुझ में ही मिलकर मुझसे ही खुद को समंदर बता रही हैं
ए खुदा तू ही बता हर वक्त ऐसा क्यों होता है ?
सभी बंधन को तोड़कर दूसरों को खुशी देने वाला
किसी की नजरों में हर एक पल क़ातिल क्यों होता है ?
जब सैलाब आती है किसी समंदर के अंदर तो फिर
गुजरा हुआ सारा मंजर किसी का जीवन क्यों होता है ?
आख़िर सैलाब लाने वाला भी तो गुजरा हुआ मंजर ही है
आख़िर कोई समंदर कितना पीर का भार लिए बहेगा
कभी ना कभी तो सुंदरता का विध्वंसक शिव वह बनेगा
जब-जब स्वच्छ नदी के संग मैली यमुना समंदर में मिलेगी
तब-तब शिव सा कोई समंदर सती की याद में रूद्र रूप में आएगा।
मानवता को अपनी व्याकुलता वह बताएगा।
फिर हम क्यों कहते हैं ? समंदर विध्वंसक हो गया।