था एक सपना
था एक सपना
था एक सपना मेरा कि घर हो मेरा अपना
था एक सपना मेरा कि कोई हो मेरा अपना
मगर रह गया वोह अधुरा
था एक सपना मेरा भी हो एक घर जिसमे हो प्यार ही प्यार
तकरार भी हो मगर प्यार से
जब घर मे शाम को मैं थक कर
काम से आऊँ तो सुकुन से बैठ पाऊ
जहां लोग हो मेरे अपने
जो प्यार करे मुझे
जहाँ गरम चाय की प्याली हो
दो वक़्त का अच्छा खाना हो
अपनो का संग हो
मगर सारे सपने मेरे टूट गए
किस्मत मेरी ऐसी
है घर मगर है पराया
जिस घर मे आने का मन नही करता
जिंदगी पूरी होने को आई
रह गया सपना मेरा अधूरा
टूट गया मेरा दिल
रूठ गए सपने
बस रह गई है जिंदगी
अधूरे सपनो के साथ।