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तेरी यादों का बसेरा

तेरी यादों का बसेरा

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जब से किया तेरी यादों ने बसेरा

पता ही न चला कब गुज़ारा दिन

कब छा गया अँधेरा

ज़िन्दगी हो गयी बेजान मेरी

जैसे लूट कर चला गया कोई मेरी दुनिया

छिन कर मुझसे मेरी हर ख़ुशी

छोड़ गया वो बस तन्हाईया

गहरी ख़ामोशी है आसपास

बिखर गयी हर आस

दिल में दर्द आँखों में नमी,

तूने जो तोहफ़े में दिया

तब से किया तेरी यादों ने बसेरा

पता ही न चला कब गुज़रा दिन

कब छा गया अँधेरा

अधूरा मेरा हर लफ्ज़ अधूरी मेरी कहानी

तेरे बिना पतझड़ बन कर रह जाएगी ज़िंदगानी

आँखों से ओझल तू हो गया

नीर बनकर आँखों में बस गया

ख़त्म हो गयी हर उम्मीद

तब से ही किया तेरी यादों ने बसेरा

धूप में मिल रही शीतल छांव था तू

ज़िन्दगी की मंज़िल रौशन राह था तू

खुशियों की चाह बताकर

ग़म के अँधेरे में धकेल गया

दर्द भी अभी कुछ बाकि नहीं

हँसना तक हम भूल गए

रूह भी मेरी साथ ले गया

तब से किया तेरी यादों ने बसेरा

पता न चला कब गुज़रा ना दिन,

कब छा गया अँधेरा !


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