तेरा इश्क़ ...
तेरा इश्क़ ...
हर रात चाँद को तकना
और ये सोचते रहना
कि वो भी शायद
कहीं ये चाँद देख रहा होगा ....
जैसे मैं उसे
याद कर रही हूँ
वो भी मुझे याद
कर रहा होगा ....
और कभी - कभी
अकेले में ख़ुद से ही
बातें करना
ये सोच कर कि
तुम मेरे सामने हो
मैं तुमसे ही तो बात कर रही हूँ !
उफ्फ...!
कितनी सारी कल्पनाएं
और कितनी ऊंची है
ये इश्क़ के परिंदे की उड़ान ....
जहाँ तुम प्रत्यक्ष तो
मेरे सामने नहीं होते
मैं तुम्हें छू नहीं सकती
पर अप्रत्यक्ष में हर पल
तुम मेरे साथ हो...
मैं सोते - जागते
खाते - पीते
हर क्षण
तुम्हें अपने पास पाती हूँ
कुछ भी करूँ
कहीं भी जाऊँ
तुम्हें इक पल के लिए भी
दिलोदिमाग से जुदा नहीं कर
पाती हूँ .....
अगर ये सारी निशानियाँ प्यार की हैं
इश्क़ की हैं
तो हाँ .....
मुझे तुमसे प्यार है
इश्क़ है
मुहब्बत है .....!