मुझ जैसा कोई
मुझ जैसा कोई
दिल की दहलीज पर दस्तक तो
न जाने कितनी बार हुई
कभी वो दस्तक सुनाई
नहीं दी तो
कभी सुन कर भी अनसुनी कर दी
कभी यूँ भी हुआ कि दिल की
खिड़की से झाँका तो लगा
दस्तक देने वाला कुछ अपना
सा तो है
दो चार बात हुई तो लगा नहीं
ये वो दुनिया है जहाँ पर दिल को
न कोई समझता है न दिल का
कोई मोल है
जैसी हूँ मैं वैसा क्या इस जहाँ
में ख़ुदा ने किसी को नहीं
बनाया
अब जब होती है कोई भी दस्तक
दिल के दरवाज़े पर तो वो
सुनाई नहीं देती
हो चुका है दिल पाषाण सा जिस
पर किसी ऋतु किसी भावना
का कोई असर नहीं
और अंत में बचता है बस इंतज़ार
एक अंतहीन इंतज़ार
शायद पूरी दुनिया में कोई तो होगा
कहीं तो होगा
मुझ जैसा कोई