दर्द हम बन्दों का समझ पाते
दर्द हम बन्दों का समझ पाते

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ए काश ! तुम दर्द हम बन्दों का समझ पाते
ख़ुदा मेरे कभी तो तुम इस जमीं पर भी आते
इंसान बनकर जीना हुआ है किस कदर मुश्किल
ए काश! तुम भी कभी हमारी तरह जी पाते
हर पल टूट कर बिखरना फिर समेटना खुद ही को
दर्द के तमाम मोतियों की तुम माला पिरो जाते
हर वक़्त कोई फिक्र हर कदम इक ज़ख्म होता
तुम भी कभी ज़िंदा होने की कोई कीमत चुका पाते
ए काश ! तुम दर्द कभी मुफ़लिसों का
बाँट पाते
जो देते हो दर्द कभी उसकी तुम दवा भी बन पाते