तू कहाँ है
तू कहाँ है
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अजब सा दौर है क्या अजब सा समां है
बेशुमार भीड़ है पर तू कहाँ है
टूटी हुई आस है ज़िन्दगी ये धुआँ है
पत्थरों का शहर है कोई इंसा ही कहाँ है
आईना भी जैसे मुझे पहचानता ही न हो
मुझ को पता नहीं मेरा ही साया अब कहाँ है
इक अजब सी थकन है सांस लेना भी जैसे गुनाह है
मैं हूँ कौन और कहाँ न इसका कोई गुमाँ है
कैसी ये ज़िन्दगी है कैसा ये जहाँ है
खुद को पाने की कोशिश में हर कोई यहाँ है