तू कहाँ है

तू कहाँ है

1 min
293


अजब सा दौर है क्या अजब सा समां है

बेशुमार भीड़ है पर तू कहाँ है


टूटी हुई आस है ज़िन्दगी ये धुआँ है

पत्थरों का शहर है कोई इंसा ही कहाँ है


आईना भी जैसे मुझे पहचानता ही न हो

मुझ को पता नहीं मेरा ही साया अब कहाँ है


इक अजब सी थकन है सांस लेना भी जैसे गुनाह है

मैं हूँ कौन और कहाँ न इसका कोई गुमाँ है


कैसी ये ज़िन्दगी है कैसा ये जहाँ है

खुद को पाने की कोशिश में हर कोई यहाँ है


Rate this content
Log in