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कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Romance Tragedy

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कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Romance Tragedy

तेरा ही जिक्र

तेरा ही जिक्र

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नींद भी आती नहीं रात भी जाती नहीं

कोशिशें इन करवटों की रंग कुछ लाती नहीं


चादरों की सिलवटों सी हो गई है जिंदगी

लोग आते लोग जाते सिलवटें जाती नहीं


जुगनुओं के साथ काटी आज सारी रात मैंने

राह तेरी भी तकी पर तुम कभी आते नहीं


कुछ शब्द छोड़े आज मैंने रात की खामोशियों में

मैं जो कह पाता नहीं तुम जो सुन पाते नहीं


तेरा ही जिक्र होता है

हर एक अल्फाज में मेरे


वो भी इस सलीके से

कि तू बदनाम ना हो जाए।


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