तड़प
तड़प
तेरे प्यार में इन्तज़ार ने इस तरह तड़पाया मुझे,
कि दर्द भी ना हुआ और दर्द सहा भी ना गया।
ग़र मैं तड़प रही हूँ शोलों में तो चैन
तुम्हें भी कहाँ आ रही होगी।
फूलों की सेज तुम्हें भी अँगारो सी जला रही होगी।
ग़र रातें है मेरी काली तो तुम्हारी भी तो ना उजली होगी।
सुलग रहा है जिस आग मे मेरा तन-बदन,
वो आग तुम्हे भी तो जलाती होगी।
प्यासी हूँ जिस तरह मैं तुम्हारे प्यार की,
तुम भी तो मेरे लिए करवटें बदलते होंगे ।
ग़र मैं हूँ बँदिशों में, कुछ तुम भी तो
मजबूरियों के रिश्ते निभाते होंगे।
बेरँग सी हूँ ग़र मै तुम बिन,
बिन डोर के पतँग सी
तो तुम भी मुझ बिन बिख़र गए होंगे।
ग़र होता मालूम अहदे-इल्तिफाते (प्यार के वादे ) ना करोगे पूरे,
तो ज़ज़्बे -पिनहा (छुपी भावनाऐं) ना बताते आपको।
मैं ग़र थी चुप तो, तुम भी तो ना बोले कुछ,
ना हम रफ़ीक बन सके, ना हम रक़ीब बन सके।
ग़र फ़रेब नहीं किया तुमने तो,
एहदे-वफ़ा भी तो नहीं किया।
दमें-आख़िर तक रहेगा इन्तज़ार तुम्हारा,
ग़र फिर भी ना मिल पाए,
तो मशहर मे भी इन्तज़ार करेंगे।
ग़र मै तड़प रही हूँ याद में तुम्हारी,
तुम्हें भी तो मेरी याद आती ही होगी।
ए ज़िन्दगी रँज रहेगा हमेशा ये कि कश्ती तो
डूबी हमारी, मगर हम ना डूबे।
जब भी तुम्हें कोई ग़म का आलम तड़पाएगा,
किस्सा मेरा ख़ामोश लम्हों का तुम्हें याद आएगा।
ना तुम्हे भुला पाऐंगे ,ना तुमको छोड़ पाऐंगे,
कब तक रहेंगे तुम बिन ज़िन्दा,
अब तो मौत को गले लगाऐंगे।
हम बहुत दूर चले जाऐंगे तुमसे
पतझड़ के पत्तों की तरह फिर कभी ना
मिल पाऐंगे नक्श्पाँ की तरह।