तदबीर बिना तकदीर नही
तदबीर बिना तकदीर नही
ज़िन्दगी का लुत्फ उठाना हो
तो ज़लज़लों से वाबस्ता हो
परवाज़ अपनी बुलंद करो
और झुका दो आसमानों को
रुखसार पर न कभी शिकन हो
न दिल में रखो कोई खौफ
वक़्त चाहे कितना गर्दिश में हो
न थमने दो कोशिशों को
हर ज़र्रे में छुपा है एक सवाल
मुश्किल है बस जवाब ढूंढना
तकदीर रुठे गर किसी मुकाम पर
न मरने दो ठोस इरादों को
दस्तक देती है कामयाबी खामोशी से
न कभी भीड़ का हिस्सा बनो
आंखों में ख्वाब ज़िंदा रखो
तदबीर से रंग दो ख्वाहिशों को
जनून गर तदबीरों में हो
कुदरत भी सर झुकाती है
तराशो अंदर के ज़मीर को
पिरो दो कामयाबी के लम्हों को
