STORYMIRROR

Kishan Negi

Classics Inspirational

4  

Kishan Negi

Classics Inspirational

तब बात कुछ और थी

तब बात कुछ और थी

1 min
266

लहरा कर आँचल ढलती सिंदूरी शाम

पंछियों का थक कर फिर ठिकानों को लौटना 

पहाड़ों से नीचे उतरता अलसाया दिनकर 

लहराती पीली सरसों का हवा से इश्क़ लड़ाना 

अब कहाँ वह दिन, तब बात कुछ और थी 


बादलों का गरजना, बिजलियों का चमकना

सावन के झूलों में सखियों का इठलाना 

बरसात के पानी में काग़ज़ की नाव बहाना 

अमुवा की डाल पर सुबह कोयल का गुनगुनाना 

अब कहाँ वह दिन, तब बात कुछ और थी 


घूँघट पट खोल बागों में कलियों का मुस्कुराना 

फूलों का रस चुराकर भवरों का मचलना 

मादक बसंत की खुमारी में बहारों का बहकना 

बावरी तितलियों का फूलों से आँख मिचौनी 

अब कहाँ वह दिन, तब बात कुछ और थी 


कहाँ वह नटखट बचपन, कहाँ फीकी जवानी 

वो बलखाती गलियाँ, यारों के नुक्कड़ 

खुले आसमां में उड़ने की जिद्द करती पतंग 

नीम की छाँव तले दाना चुगती नन्हीं गौरैया 

अब कहाँ वह दिन, तब बात कुछ और थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics