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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

3  

Bhawna Kukreti Pandey

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तारीखें

तारीखें

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तारीखें सिर्फ तारीख नहीं होती हैं।

कहीं ये मरहम या नासूर होती हैं।


रतजगे कराती आई ये तारीखें, 

कहीं वजूद का परचम भी होती हैं।

नीम जरूरतों पर ये तारीखें,

कहीं बेबसी की चीख भी होती हैं। 


त्योहारों की सुहागन तारीखें,

कहीं बिछोह की आह भी होती हैं।

लुटी हुई औरत की चीख पर,

कहीं चुप तारीखें सवाल भी होती हैं।


तारीखें यूँ ही जन्म नहीं लेती, 

कहीं वे अतीत का असर भी होती हैं।


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