तारीफ़ तेरी
तारीफ़ तेरी
एक दिन कहो जो तुझे देखकर
मैं सुबह से शाम कर दूँ,
मैं अपनी सारी जिंदगानी तेरे नाम कर दूँ,
तस्वीर नही तसव्वुर में बसते हो मेरे,
मिजाज ही नही सासो में बसते हो मेरे,
तेरी आंखे खूबसूरत झील जैसी है,
तेरा वदन मदमस्त जैसी पवन,
तेरी आंँखो को देख के बरसती हुई बारिश भी सरमाने लगी है,
तेरी खुशबू के आगे गुलाब की महक भी जैसे फिकी लगने लगी है,
तेरी खूबसूरत के आगे चांँद की चमक जैसे फीका लगे है,
यह बिखरी जुल्फे बड़ी हसीं करतीं है,
ये शाम भी तो कुछ रंगीन करती है,
ये दिन में देखो कैसी उदासी छाई है,
जरा मुस्कुरा के देखो ये आसमां में भी लाली आई है।
ये अंधेरे से कमरे लौ की जरूरत ही क्या?
जरा देख लो तो खुद भी रोशन हो जायेगी।
मुझे थामने की जरूरत है क्या ?
तुम अगर थाम लो तो जिंदगी सवर जायेगी।
मेरी शायरी की लफ्जो में तुम हो,
एक कवि के कविता और गजलो में हो तुम हो।
तुम्हारी तारिफ में मै क्या कहूंँ ?प्रिए
मेरी जिंदगी की जरूरत हो तुम।