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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract Inspirational

स्वयम हूँ स्वयम से दूर

स्वयम हूँ स्वयम से दूर

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मैं अपूर्ण हूँ,

फिर भी मैं केवल मैं ही हूँ ।

स्वयम की स्वीकृति की साथ हूँ,

लेकिन अपर्याप्त हूँ।

 

मैं जानता हूँ कि

वो निर्विकार मुझ में समाहित है

लेकिन मैं भावबद्ध हूँ।

 

सृष्टि के सृजन की शक्ति के साथ

मैं अलौकिक का स्वामी हूँ।

फिर भी रक्त का हर कण

मुझे शुद्ध करना होता है।

 

मुझे काटना दिव्यता के लिए असंभव है

किसी और आवश्यकता नहीं है।

संचय की प्रवृत्ति के साथ,

मैं प्रचुर कैसे हूँ, विचार निःशब्द हैं।

 

मैं सभी आनंद का स्रोत हूँ,

हर विकार से हर क्षण परे हूँ।

लेकिन ब्रह्माण्ड की ऊर्जा को

सुख दुःख में परिवर्तित कर देता हूँ।

 

मैं कभी भी दर्पण में

अपने आप को नहीं देख पाता हूँ

स्वयम को पाना ही मोक्ष है

स्वयम से क्यों दूर चला जाता हूँ ?



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