स्वतंत्रता
स्वतंत्रता
मेरा मुखर होना उन्हें कचोटता है उन्हें आदत पडी़ है
स्त्री को परम्परागत रूप में देखने की
दबी - कुचली, मौन धारण करे, घर में कैद
वे चाहते हैं मेरी आवाज दबाना
डर है कहीं छिन न जाये सत्ता उनसे
मेरा स्वतंत्र होना उन्हें कचोटता है
मैंने पढा़ है इतिहास
हमारे पूर्वजों ने जान पर खेलकर
दी है हमें ये स्वतंत्रता
अपने खून को स्याही बना
लिखी भारत मां की पीठ पर स्वतंत्रता
मैं स्वतंत्र हूं इस स्वतंत्र देश में
हमारे संविधान ने दी है मुझे
अभिव्यक्ति की आजादी
तो मैं बोलूंगी
तो मैं लिखूंगी
तुम्हारे हर जुर्म के खिलाफ
तुम्हारी हर सड़े -गिले नियम के खिलाफ
जो तुमने बनाया है बस हमारे लिए
मेरी आवाज दबाओगे तो
निकलेगीं घरों से और आवाजें
आगाज हो चुका है
वक्त आ चुका है
ध्वस्त होने वाला है तुम्हारा
पितृसत्ता का ये महल
मैं लिखूंगी कोरे कागज पर ' स्वतंत्रता '
पढेंगी सभी स्त्रियां स्वतंत्रता
और जीयेगीं 'स्वतंत्रता '.....