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BHAVANA AHUJA

Abstract

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BHAVANA AHUJA

Abstract

स्वीकार

स्वीकार

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आज मैं क्या कहूँ ?

आज मैं क्या सुनूँ ?

सोचती हूँ आज के परिवेश में

सोचती हूँ  आज के गलियारों में


सोचती हूँ आज के विचारो में

सोचती हूँ आज के लम्हो में !

क्या केवल सोचना काफी है ?

या पुरानी रीतियों से

सीखना काफी है ?


क्या बसंत के महीने का

गुलज़ार काफी है ?

क्या सावन की मिट्टी की

सुगंध काफी है ?


मौन का अर्थ अमृत

सी शीतलता है पर 

क्या यह जज़्बात

बयाँ कर पाता है ?


पाना और खोना

हँसना और रोना 

इनको समझना और

परखना काफी है ?


यही सोच विचार

दिमाग में कौंधते हैं

इनका उपचार करूँ या

व्यर्थ ही स्वीकार करूँ ?


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