काश मैं एक परिंदा होती !!
काश मैं एक परिंदा होती !!
काश मैं एक परिंदा होती, तो जहाँ दिल करता वहाँ उड़ जाती,
काश मैं एक परिंदा होती, तो न कोई ख़्वाब होते न उनके टूटने का दुःख !!
फिर पंखुड़ियों को सहेजती एक ख़ुशी का संसार सजाती ,
उम्मीदों को जिन्दा रखती हुई, मैं फर फर उड़ मुक्त हो जाती !!
शाखाओं पर बैठकर , मन की ऊँची उड़ान उड़ती,
ढूंढ ही लेती अपनी जमीन, अगर मैं एक परिंदा होती !!
शायद होती निर्मल, कोमल और प्रेम से भरी ,
जज़्बातों को संभालती ,उड़ जाती बादलों के पार !!
अपने जेहन में खुदा को बसाती , पिंजरा तोड़ हवाओ को अपनाती,
काश मैं एक परिंदा होती तो बस बुलंदियों को छू जाती !!