कविता - उम्र
कविता - उम्र
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खुशियों के तरानो से खाली उम्र नहीं गुजरती है,
जिंदगी वो सच्चाई है जो हर पल बदलती है !
नया रूप लेती वो प्रतिदिन , हर पहर मरती है,
जीवन-मरण का अनोखा खेल , हर रोज़ पूरा करती है !
बनते-बिगड़ते रिश्तो का रोज़ नया पन्ना जुड़ता है,
प्यार पाने के लिए हर इंसान दहकता है !
रोज़ नए ख्वाब आँखों में महकते हैं,
वक़्त को थाम लें यही ताना-बाना बुनते हैं !
गुरुर के आसमान को छूती मज़िलों पर बढ़ती है,
पर वक़्त के खेल की बाज़ी पलट भी जाती है !
खुदा ने प्यार बख्शा सबको एक सामान है,
रहो खुश, जियो प्रतिदिन यही उम्र का रुझान है !!