सूरज ( कविता )
सूरज ( कविता )


मैं सूरज हूँ दीपक नही
मेरा काम उदय होना है जलना नहीं
डूबना है बुझना नहीं
माना कि मेरी बेटी,
मेरी किरण दुनिया को रोशनी देती है
और वो अंधकार को मिटा देती है
मैं जब सुबह निकलता हूँ तो
दुनिया उठ कर मुझे नमस्कार करती है
मैं जब अपने यौवन पर होता हूँ तो
गर्मी मे लू से दुनिया मरती है
और ठंडी मे उनकी बांछे खिलती है
लाखों बुराई मुझ मे हो पर हर बाप यह कहता है
बेटा तुझ को बड़े होकर तो सूरज ही बनना है
इतनी दूर दुनिया से निकल कर आसमान में
सूरज की तरह चमकना है
कोई न पहुंच सका मुझ तक ये तुम कैसे भूल गए
देवता बना तो दिया तुमने पर अब मेरी पूजा कैसे भूल गए।