सूनी राहें
सूनी राहें
ये सूनी सड़कें आज
कोलाहल से परे
निकलता था हर वो शख्स
कभी अपने पैरों तले,
पहाड़ो के बीचों बीच
इन सड़कों का सफर
लम्बी दूरियों को कभी
वो यूँ ही नापते हुए,
शोर करती वो मोटरें
ध्वनि की कर्कश आवाजें
हादसे भी बन्द पड़े
आज हैं सूनी शांत राहें,
ब्यस्त पड़ीं थी सड़कें
वो गलियां, नुक्कड़ भी
भीड़-भाड़ में धक्के
बेवजह की वो बहसें,
छाया हो जैसे मातम कोई
दिखती अंजान राहें
अपनी ही सड़कों के आज
बदल गए हैं रुख व नखरें।