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Surjmukhi Kumari

Abstract

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Surjmukhi Kumari

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सुरमई शाम ढले

सुरमई शाम ढले

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नीले नीले गगन के तले सुर में शाम ढले

काली काली रातों में चांदनी का पहरा चले


 तारों की छांव में अरमानों के गांव में धुन बजती है यूं ही हवाओं में

हम सुनते हैं गाने यूं ही इंतहा में


 सुकून मिलता है हमें सर गमों की बाहों में

 अकेली रातों में चांदनी के साथ बातों में


 रातें गुजरती है मेरी रचनाओं से मुलाकातों में

हाथ रहते हैं मेरे कागज और कलम के हाथों में


 मिलती है दिल को ठंडक गानों की अल्फाजों में

शाम को दे जाता सूरज सपने कई आंखों में


 सुबह आकर करके बदमाशियां रोज हमें जगाता है

शाम को विदाई सुबह स्वागत है ना कितनी अच्छी बात।


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