STORYMIRROR

Surjmukhi Kumari

Fantasy Inspirational Others

4  

Surjmukhi Kumari

Fantasy Inspirational Others

चांदनी रैन निहारे

चांदनी रैन निहारे

1 min
404

शाम की डगरी पर चंदा निहारे

कंचन जल में पांव पखारे


लगे नहीं मन अब तेरे बिना रे

बरसे नयन और तरसे जिया रे


 खुद को जलाकर देता है पूरी दुनिया को जिया रे

छुपा कहां है आज दरस दिखा रे


 रोये है मन और दिल पुकारे

 जी रही हूं सिर्फ तेरी यादों के सहारे


अब आ भी जा मत तर सारे

 चांद की नगरी पर चंदा निहारे


 कंचन जल में पांव पखारे

बीत न जाए पल अब आ जाओ मिलने पिया रे



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy