चांदनी रैन निहारे
चांदनी रैन निहारे
शाम की डगरी पर चंदा निहारे
कंचन जल में पांव पखारे
लगे नहीं मन अब तेरे बिना रे
बरसे नयन और तरसे जिया रे
खुद को जलाकर देता है पूरी दुनिया को जिया रे
छुपा कहां है आज दरस दिखा रे
रोये है मन और दिल पुकारे
जी रही हूं सिर्फ तेरी यादों के सहारे
अब आ भी जा मत तर सारे
चांद की नगरी पर चंदा निहारे
कंचन जल में पांव पखारे
बीत न जाए पल अब आ जाओ मिलने पिया रे।
