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Surjmukhi Kumari

Abstract

3  

Surjmukhi Kumari

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पिंजरे में कैद पंछी

पिंजरे में कैद पंछी

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ओ मेरी पिंजरे की मैना तू चुप क्यों है कुछ कहना

 क्या तुझे इस पिंजरे में ही है रहना


क्या बेड़ियों की बंधन में ही तुझे है रहना

क्या तुझे घुट घुट कर आंसू है बहाना


 ओ मेरी पिंजरे की मैना क्यों चुप है तू कुछ तो कहना


पिंजरे की पाबंदियों में ही तुझे है रहना

 तोड़ दे सलाखें सारी बेड़ियां उड़ जा तू आसमान में

 बेेड़ियों में बंद कर पाओ हो चुकी है घायल

 क्या तुझे अपने अरमानों को यूंही टूटते देखना


तोड़ दे बंदिशों को ले ले बदला अपने अपमान का बना अपने आत्मसम्मान को हथियार

बनाकर स्वाभिमान को अपना तलवार कर अपने दुश्मनों पर प्रहार बंजा


मेरी मैना अब तू चुप मत रहना

तोड़ दे अपने सामने की हर दीवार


 तूू कभी हार मत मान भर ऊंचे आकाश में उड़ान अपनी मंजिल को पहचान।


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