सुपर डुपर हों कितने पावर!
सुपर डुपर हों कितने पावर!
जंग रहे या अमन रहे,
गुलशन अपना चमन रहे।
सत्य, अहिंसा, शांति अस्त्र से,
पुलकित सारा गगन रहे।।
योध्दा हैं हम जब आवश्यक,
नहीं रहे हम कभी भी कायर।
अपने तो बस हैं यायावर,
सुपर डुपर हों कितने पावर।।
एक वस्त्र के , एक अस्त्र के,
गांधी अपने ओज सहस्त्र थे।
अंग्रेजी ताक़त से निर्भय,
बन फ़कीर वे बहुत मस्त थे।।
आज़ादी का सिंहनाद था,
खुशहाली की थी चाहत।
राजतंत्र से थे मर्माहत ,
धरती अम्बर हुए थे आहत।।
नर - नारी थे समर भूमि में,
भरकर जोश सभी जन -जन में।
आज़ादी चाहत थी मन में ,
सुपर डुपर घबराया पल में।।
पन्द्रह अगस्त का शुभ दिन आया,
देश ने मंगल गीत सुनाया।
बापू ने बिन अस्त्र शस्त्र के,
आज़ादी सबको दिलवाया।।
बना लिया ऐटम भी हमने,
ताक़त दिखा दिया हम सबने।
लेकिन शांति- समृद्धि का परचम,
अब भी फहरा रक्खा हमने।।