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BINDESH KUMAR JHA

Romance

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BINDESH KUMAR JHA

Romance

सुनो प्रिय

सुनो प्रिय

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सुनो प्रिय


यह जो तुम्हारा मेरा प्रेम है 

यह कागजों तक सीमित नहीं

पुष्पों के सुगंध से भी परिभाषित नहीं


यह जो तुम्हारा समर्पण है

प्रशंसा इसके तुल्य नहीं

इसमें ना तो हार इसमें जीत नहीं


मैं तुमसे भौतिक रूप से ही दूर हूं 

पर हृदय से करीब कहीं

पा लेना प्रतिक्षण मुझे खो ना जाऊं कहीं।


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