सुनहली धूप
सुनहली धूप
सुनहली धूप में जब मैं सुबह टहलता हूँ,
मन में नये नये विचारों का होता आगमन,
थिरकती धूप में शब्दों का होता प्रवाह,
लिखने लगता हूँ इस धूप में मन के अहसास ,
शब्दों की व्यंजना, अभिव्यंजना, अलंकार,
शब्द अर्थ ,छंद, मुक्त भाव की भाषा में बंध,
मन के भावों का गुलदस्ता सुनहली धूप में,
पीला, लाल,नारंगी, सुनहला सा शब्द बन ,
संयोजित हो कागज़ के आँगन में उभरता है। ।