सुन्दर हो सब संसार
सुन्दर हो सब संसार
मिटे हर द्वेष और उपजे प्यार,
तब ही तो सुन्दर हो सब संसार।
स्वार्थ होता है द्वेष का मूल,
स्वार्थ भाव की करें न भूल।
परमार्थ मानवता का है सार,
मिटे हर द्वेष और उपजे प्यार,
तब ही तो सुन्दर हो सब संसार।
जग में सब सुंदरता ही चाहें,
प्यार करें और प्यार सराहें।
सबको सुख ही देता प्यार,
मिटे हर द्वेष और उपजे प्यार,
तब ही तो सुन्दर हो सब संसार।
जो देंगे हम वहीं तो पाएंगे,
सुख देकर ही सुख पाएंगे।
यही है मानवोचित व्यवहार।
मिटे हर द्वेष और उपजे प्यार,
तब ही तो सुन्दर हो सब संसार।