कष्ट- निज इच्छा बोझ से
कष्ट- निज इच्छा बोझ से
है होता भ्रम यही सबको
मेरा ईश्वर है हमसे रुष्ट।
निज इच्छा बोझ से ही हम,
भोगते रहते पल-पल कष्ट।
अपने आप को मान के निर्बल,
हम भूल जाते अपनी पहचान।
औरों से करके खुद की तुलना,
करते खुद का ही हैं नुकसान।
क्षमता का बिन किए आकलन,
कर देते समय बहुत हम नष्ट।
निज इच्छा बोझ से ही हम,
भोगते रहते पल-पल कष्ट।
तेरे -मेरे के चक्कर में पड़ करके,
वास्तविक स्वरूप हम जाते भूल।
स्वार्थ सिद्धि के लालच में फंसकर,
बो देते हैं खुद निज पद में हम शूल।
देखा-देखी में लेते कुछ गलत फैसले,
जबकि दुष्परिणाम भी होता है स्पष्ट।
निज इच्छा बोझ से ही हम,
भोगते रहते पल-पल कष्ट।
जड़ -चेतन सबको ही हितकर हो,
मिल- जुल धीरज धर करें वे काम।
रखकर निरासक्त मन की भावनाएं,
रह निश्चिंत हो नाम या हों बदनाम।
जो पावन ध्येय है अपना सुनिश्चित,
न तज सन्मार्ग कभी हों पथभ्रष्ट।
निज इच्छा बोझ से ही हम,
भोगते रहते पल-पल कष्ट।
है होता भ्रम यही सबको
मेरा ईश्वर है हमसे रुष्ट।
निज इच्छा बोझ से ही हम,
भोगते रहते पल-पल कष्ट।